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मानस महा संघ- एक संकल्प, एक प्रयास


'मानस महा संघ'
यानी रामचरित मानस का महामंच

'मानस महा संघ का' दुनियाभर में फैले हुए रामचरित मानस प्रेमियों को एक मंच पर लाने का दुर्लभ प्रयास किया जा रहा है। इसकी प्रेरणा भी प्रभु श्रीराम से ही मिली है। वर्तमान में इसे प्रयोग के तौर आगे बढ़ाया जा रहा है। इसके बाद प्रभु की इच्छा से जैसा होगा वैसा आगे बढ़ेगा।


वर्ष में इस समय लगभग 80 हज़ार मानस समूह प्रभु की भक्ति में लीन हैं, जिसमें सक्रिय रूप से 2 लाख लोग अपना तन,मन, धन लगाकर काम कर रहे हैं। प्रसन्नता की बात ये है कि इन समूहों में से सबसे अधिक सक्रिय समूह गुजरात राज्य से हैं।  राजधानी दिल्ली में भी कई मानस समूह पूरी भक्ति भावना से काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में सांगठनिक ढांचा उतना मजबूत नहीं है, लेकिन रामचरित मानस प्रायः प्रत्येक हिंदू घरों में पढ़ा जाता है।


हमारा प्रयास है कि रामचरितमानस को घर-घर में पढ़ा जाए क्योंकि ये ग्रंथ हिंदू संस्कृति का संस्कार ग्रंथ है। इसका जितना फैलाव होगा उतना ही हिंदू संस्कृति पुष्पपल्लवित होगी।                                                             उद्देश्य
रामचरित मानस के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले सुंदरकांड के रसिक और संगीतमय पाठ करने वालों को इस महामंच पर लाना और उनको सम्मानित करने का अतुलनीय काम किया जाना है।

रामचरित मानस का अभ्यास बढ़ाने के लिए काम करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें समय-समय पर सम्मानित करना। मानस अभ्यास को प्रोत्साहित करने के लिए स्कॉलरशिप योजना को लॉन्च करना है, जिसके लिए देश के जाने-माने श्री रामकथा वाचक सैद्धांतिक रूप से तैयार हो गए हैं। अब तो प्रभु त्रीराम से बस आशीर्वाद की वर्षा की अपेक्षा है...
क्योंकि
तुम्हहि नीक लागै रघुराई। 
सो मोहि देहु दास सुखदाई॥

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥


मो सम दीन न दीन हित तुम समान रधुबीर। अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर।।


कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम। तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम।।



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